मुझे ब्लॉग लिखना बहुत अच्छा लगता | इससे अपने आप को समझने में मदद मिलता अपने मन की बात को रख पाता | सही करता या नहीं मुझे नहीं पाता लेकिन मन को खुश जरुर कर लेता हूँ |
मैं कई बार अनुभव किया लोग केवल समस्या को मुद्दा बना कर आपस में लरने एक दुसरे को कोसने का काम करते | समस्या का निदान क्या हो सकता कैसे हो सकता ये कोई नहीं बताता | मैं बीबीसी पोर्टल पर शुसिल जी का ब्लॉग पढ़ा बदल गए गाँव, बाद विवाद था गाँव में अब सब कुछ बदल गया | कियो नहीं गाँव बदलेगा हम तमाम लोग जो शहर के हो कर रह गए | मैं अभी कुछ दिन पहले अपने गाँव गया | अपने बरे बुजुर्गो से मिला और उनके मन में एक मात्र खलबली था की मेरा बेटा पोता भी शहर जाये और शहरी बन जाये | फिर मैंने उनके दर्द को कुरेदने का काम करना सुरु किया | मैं ऐसा नहीं करना चाहता था लेकिन ऐसा नहीं करता तो अपना जिगयासा पूरा नहीं कर पाता की हमारे गाँव के लोग अपने बेटे पोता को शहरी कियो देखना चाहते हैं |
१. इन्सान दिखावे में जीता हैं ये सत्य हैं आप इससे मुहं नहीं मोर सकते | हर किसी को सपने देखने का और उसको पूरा करने का अधिकार भगवान ने दिया हैं और कोई कानून नहीं हैं की इस समस्या पर पावंदी लगा सके | जब हम शहर में रहने वाले लोग अपने गाँव में जाते तो ठाठ शहर का चाहते हैं और भले आप शहर में रिक्श्वा कियो नहीं चलाते, रोज दिन का दह्यारी करने वाले हैं, या आप ऑफिसर कियो ना हैं आप अपने गाँव पहुच कर शहर के २० रूपये की जिन्दगी को गाँव में ५० रूपये की जिन्दगी दीखाने लगते ये हकीकत ६०% से जयादा हैं भले आप शहर से कर्ज ले कर कियो ना गए हों उन बुजुर्गो के मन में एक प्रश्न खरा कर आते हैं | फलाना का बेटा पोता चिलाना शहर में रहता देखा गाँव आया किया ठाठ था उसका ये प्रश्न उन्हें अपने बेटे पोते को शहरी बनाने के लिए उत्सुक कर देता और गाँव का शहर में तब्दील होना सुरु हो जाता | उदहारण के तोर पर मेरे गाँव के बहुत से लोग दिल्ली में रहते हैं हर तरह के लोग रहते हैं | और जब भी गाँव जाते उनलोगों का दिल्ली का रहन सहन गाँव भी जाता जब की दिल्ली में कोई दरवान है कोई ड्राईवर हैं कोई एक्सपोर्ट कंपनी में काम करता किसी का पगार ५००० से जयादा नहीं होगा | लेकिन गाँव पहुच कर उनका पगार १०००० से काम नहीं रहता और ये समस्या हर साल २-४ को गाँव से शहर ले आता और जो समझदार होते वापस लोट जाते और जो हकीकत से भागते ओ दरवान का नोकरी कर लेते लेकिन अपने खेत में हल नहीं चला सकते इन्हें गुमराह होने से रोकने का काम करे गुमराह ना करे |
२. जब आप और हम जैसे लोग अपने गाँव जाते तो गाँव में समस्या किया हैं इन बातो पर ध्यान ही नहीं जाता | हम आप अपनी शहरी ठाठ दीखाने में लगे रहते थोरा टाइम निकाल कर गाँव के स्कूल में जा कर अगर देख ले की गाँव में रहने वाले के बच्चो को स्कूल में मास्टर जी सही शिक्षा दे रहे हैं या नहीं | लेकिन इससे हमारा आप का कोई लेना देना नहीं होता उन बच्चो के साथ आप थोरा टाइम नहीं दे सकते लेकिन बच्चा पढने में कैसा हैं अच्छा हैं या नहीं उनके बुजुर्गो को बता देते और उन बुजुर्गो के मन में एक प्रश्न खरा कर आते हैं |
३. आप हम जब गाँव जाते तो थोरा समय निकाल कर खेती बरी के समस्या को अगर समझ कर उनको इस समस्या से निकलने में सहयोग करे तो ये गाँव शहर नहीं बनेगा उनके फसल का पैदावार बढ़ जाता तो उनकी आमदनी बढ़ेगी और उनका हर सपना पूरा होगा और गाँव नहीं छोरना चाहेंगे |
४. आप हम जब भी गाँव जाये तो अपने संस्कृति को बचाने के लिए आप से जो बन सके भागीदारी दे और अपनी संस्कृति को बचाए | आप और हम ही ले जाते गाँव में लेटेस्ट टेक्नोलोजी और उन टेक्नोलोजी के माध्यम से आप अपने लोक गीत को भूल जाते और उन बुजुर्गो के मन में भी भूलने का प्रश्न छोर आते है |और आप ही लिखते हैं गाँव में लोक गीत ख़तम हो गया |
अगर हम और आप चाह ले तो गाँव शहर नहीं गाँव अपना स्वर्ग बना सकते बजाय भासन पोस्ट करने के अपने गाँव में थोरा समय दे जो आप से बन पाए और सही नजरया रखे हमारी कोई बात अगर किसी को ठेस पंहुचा रहा हो तो हमें माफ़ कीजियेगा उससे पहले एक मिनट ईमानदारी से सोचयेगा हकीकत दिखेगा और फिर ठेस नहीं पहुचेगा नजरया आप का सोचने का किया हैं |
Friday, March 25, 2011
Friday, March 18, 2011
अपने आत्मा को सठियाने से रोक सकते है |
मैंने आज बीबीसी न्यूज़ पोर्टल पर एक ब्लॉग पढ़ा अच्छा लगा ब्रजेश उपाध्याय जी ने ब्लॉग लिखा |
सठिया गई है अंतरात्मा थोरे देर मैं भी सोचने लगा | ब्लॉग पे बाद विवाद था लाखों बेबस लाचार अनपढ़ महिलाओं को छोटे-छोटे कर्ज़ दिलाकर एक मान सम्मान की ज़िंदगी देनेवाले नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद युनूस, को उन्हीं के देश की महिला प्रधानमंत्री जब "ख़ून चूसने वाले" की उपाधि दे दी | ममता दीदी कह रही हैं कि वे चुनाव जीतने के बाद बंगाल को बदल देंगीं.| बिनायक सेन पर देशद्रोह का आरोप लगता है | माननीय प्रधान मंत्री जी मनमोहन सिंह को वोट खरीदने बेचने के आरोप | जापान के प्रधान मंत्री जापान की सही हालत को छुपा रहे है विक्कीलीक्स के दस्तावेज पे बवाल |
अब सवाल उठती है की इन सभी समस्या में उलझी आत्मा सठिया कियो गई और किसकी/ किसका आत्मा सठिया गई |
मैं कोई उची ओदा वाला इन्सान नहीं हूँ , ना ही मैं विद्वान हूँ, ना मैं कोई राज नेता हूँ , ना मैं कोई लेखक हूँ , ना मैं कोई पत्रकार हूँ ,बस मैं अपनी सोच और समझ दोस्तों तक कुछ सन्देश भेजने का कम करता हूँ अपने फेसबुक और ट्विट्टर को अपडेट करके |
ब्रजेश जी ने अपने ब्लॉग पे एक और बात लिखा है ''लेकिन अंतरात्मा भी आजकल डिप्लोमैटिक हो गई है. पहले गूगल पर सर्च करती है, कुछ पुराने आरोपों-अनुभवों पर नज़र दौड़ाती है और फिर चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती है.' आप लोग खुद अनुभव कर सकते हमारे भारत में कितने लोग इन्टरनेट जानते है, और कितने लोग गूगल को जानते है | मैं बस हकीकत बताना चाहता हूँ | हमारे देश में भूख को मिटाने और तन को ढकने की जरुरत काम पे अगर हम सब लोग धयान दे तो ये समस्या से निजत पा सकते की सठिया गई है अंतरात्मा |
अब मैं बताता हूँ आत्मा कहाँ सठिया गई |
आप सोचये भगवन ने इस संसार में कई प्राणी को भेजा लेकिन हम इन्सान से उमीद रख कर कुछ अलग बनाया, और एक अस्त्र दिया जिसका नाम दिमाग दिया, और हम उस दिमाग का उपयोग अपने आप को चाँद सितारों से हाथ मिलाने के लिए करने लगे | निक्य्लोर पॉवर जैसे सिस्टम तक पहुच गए | इन सब तरक्की के दरमयान हम ये भूलते चले गए की एक हम से भी जयादा दिमाग वाला है, जो हमें दिमाग दिया और उनके बनाये उसुलू को तोरते मरोरते चले गए | अब आप सोचये जब हम एक दुसरे के बात से सहमत नहीं होते | अच्छे बुरे में तो हमारी आपसी रंजिस हो जाता | एक दुसरे को मारने मरने पे उतारू हो जाता हैं, तो सोचये जिसने हमें जीने का हक़ दिया सुन्दर सा दुनिया बना कर दिया हवा पानी सूर्य चाँद दिया और हम उनकी बातो से सहमत नहीं रहते तो ओ कितना नाराज हो रहा होगा | हम पर यही अहसाश दिलाने के लिए भूकंप और सोनामी जैसे लीला प्रकृति करती रहती है | हमारी आत्मा यहाँ सठिया गई हम अपने चका चाँद जिन्दगी बनाने के लिए उन प्रजाति की कोई कीमत ही नहीं समझते जो हमारे संपर्क में रोजमरा नहीं आता | एक उदाहरण के तोर पे भारत में १३० + मछलिया की प्रजाति पाई जाती थी आज से कुछ दसक पहले और अभी भारत में मात्र ८३-८५ प्रजाति की मछलिया पाई जाती है | आप सोचये अगर हम इन्सान में लरका या लरकी काला या गोरा इन्सान, लम्बा या बोना इन्सान, में से किसी एक का अस्तित्व ख़तम हो जाये तो इन्सान का क्या पहचान रह जायेगा | इसी तरह और प्रजाति की भी समस्या हैं | हम आप विज्ञानं के किताब में लाइफ साइकल वयवस्था पढ़े है की एक के बिना लाइफ साइकल टूट जायेगा और प्रलय हो जायेगा | ऐसी कई सरे उदाहरण आप को मिलेंगे सोचये डयानासुर जैसे प्राणी तब्दील और लुप्त हो सकता तो हम आदमी की क्या ? यहाँ हम जो अपनी आत्मा को सठिया रहे इसे सठियाने ना दे | प्रकृति को सजोगने के लिए आप अपनी सेवा दे | जब प्रकृति नहीं रहेगा तो हम कोंन से मनमोहन सिंह जी और कोंन से विनायक सेन जी को कटघरे में घेरेंगे |
दोस्तों इसके लिए एक सुझाव मैं अपनी तरफ से रखता हूँ जिन लोगो को सुझाव अच्छा लगे कृपा कर सहयोग के लिए अपनी हाथ बढ़ाये |
जो भी दोस्त फेसबुक में ये ब्लॉग पढ़ते हैं ओर आप को लगता है की आप जॉब कर रहे है १०००० रूपये प्रति माह आप की आय हैं | आप अपनी आय का २०० रूपये प्रति माह प्रकृति को बचाने के लिए खर्च कर सकते है | दोस्त आप २०० रूपये नहीं दे सकते तो आप और तरह से सहयोग दे सकते हैं | अब आप के पास ये प्रश्न हैं की २०० रूपये प्रति माह से क्या होगा | हम १० लोग भी अगर आगे बढे तो महीने के २००० रूपये जोर कर २ -४ पेर लगा सकते हैं | ऐसे अगर हम ५ साल भी करते तो २०० पेर जरुर लगा लेंगे | अब आप ये पूछते हैं की हमारे देश में बहुत संस्था है सरकार हैं |
मैं मानता हूँ सरकार चाहे जो भी पार्टी का हो उनको तो अपनी सियासती रोटी और कुर्सी के सिवाय कुछ नहीं करना | और जो संस्था हैं बस इन बातो के पीछे अपना बिज़नस चला रहे १० पेर लगते और १०० पेर बताते है अपनी टेक्स बचाते और देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए अपना दस्तावेज भेजदेता | मैं इन लोगो से हट के बात करता हूँ | जो भाई दोस्त दिल्ली में हैं जो और जगह हैं बिना दूर के सोचे निह्सवार्थ ये कार्य में सहयोग दे और प्रकृति को बचाने का गोरव पाए | हर कोई कुछ भी अपनी स्वार्थ के लिए करता मैं भी अपनी स्वार्थ में ऐसा सोच रहा हूँ लेकिन जब स्वार्थ भला के लिए हो तो नजरया अलग कर के सोचना चाहिए | मैं ऐसा करने में अपनी एक बुरी आदत को छोरने के लिए उत्सुक हूँ | सायद हमारे जैसे कई लोग हैं और उनकी मज़बूरी कही मेरे से बढ़ कर हो सकता | मैं सिगरेट पिता हूँ मैं इन रूपये से पेर लगाने को तैयार हूँ आप तमाम लोगो में कोई ना कोई ऐसी आदत होगा उसे थोरा कम कर के ये सोच सकते | सायद ये थोरा अटपटा लग रहा होगा दोस्तों लेकिन जरा सोचये हमारे जैसे करोरो लोग हैं, जो अपनी बुरी आदत से २०० रूपये बचा कर पेर लगा सकते | इसके लिए आपको कोई कागजी करवाई नहीं करना परेगा आप अपने आस पास के स्कूल सरक के किनारे अपने घर के आसपास भी कर सकते | घर पे करने की तो अलग बात है | अगर सरक के किनारे का योजना हो तो हम १० दोस्त मिल कर ऐसा कर सकते और इसके लिए हम किसी कानून वाव्स्था को अपने हाथ में नहीं लेंगे हम कोसिस करेंगे अपने आसपास के सरकारी दफ्तर से सहयोग लेंगे |
ऐसा हम कर सकते जरा सोचये अपने आत्मा से पुछये अगर मेरा ब्लॉग पढने के बाद किसी को अगर मुझे कोसने का मन करे तो जरुर कोसयेगा आप का हक़ है | आप को अच्छा नहीं लगे तो ख़राब बोलना हक़ हैं आपका | अगर लगता है आप मदद के लिए आगे आ सकते तो फेसबुक पे ही आप अपना योजना बना कर अपने सभी दोस्तों से आग्रह कर सकते और फिर सभी दोस्त मिल कर आगे कैसे ये सफल हो सकता सोचने लगेंगे और इसे जमीन तक लाने का |
अंततह हम अपने आत्मा को सठियाने से रोक सकते है |
सठिया गई है अंतरात्मा थोरे देर मैं भी सोचने लगा | ब्लॉग पे बाद विवाद था लाखों बेबस लाचार अनपढ़ महिलाओं को छोटे-छोटे कर्ज़ दिलाकर एक मान सम्मान की ज़िंदगी देनेवाले नोबेल पुरस्कार विजेता मुहम्मद युनूस, को उन्हीं के देश की महिला प्रधानमंत्री जब "ख़ून चूसने वाले" की उपाधि दे दी | ममता दीदी कह रही हैं कि वे चुनाव जीतने के बाद बंगाल को बदल देंगीं.| बिनायक सेन पर देशद्रोह का आरोप लगता है | माननीय प्रधान मंत्री जी मनमोहन सिंह को वोट खरीदने बेचने के आरोप | जापान के प्रधान मंत्री जापान की सही हालत को छुपा रहे है विक्कीलीक्स के दस्तावेज पे बवाल |
अब सवाल उठती है की इन सभी समस्या में उलझी आत्मा सठिया कियो गई और किसकी/ किसका आत्मा सठिया गई |
मैं कोई उची ओदा वाला इन्सान नहीं हूँ , ना ही मैं विद्वान हूँ, ना मैं कोई राज नेता हूँ , ना मैं कोई लेखक हूँ , ना मैं कोई पत्रकार हूँ ,बस मैं अपनी सोच और समझ दोस्तों तक कुछ सन्देश भेजने का कम करता हूँ अपने फेसबुक और ट्विट्टर को अपडेट करके |
ब्रजेश जी ने अपने ब्लॉग पे एक और बात लिखा है ''लेकिन अंतरात्मा भी आजकल डिप्लोमैटिक हो गई है. पहले गूगल पर सर्च करती है, कुछ पुराने आरोपों-अनुभवों पर नज़र दौड़ाती है और फिर चुप रहने में ही अपनी भलाई समझती है.' आप लोग खुद अनुभव कर सकते हमारे भारत में कितने लोग इन्टरनेट जानते है, और कितने लोग गूगल को जानते है | मैं बस हकीकत बताना चाहता हूँ | हमारे देश में भूख को मिटाने और तन को ढकने की जरुरत काम पे अगर हम सब लोग धयान दे तो ये समस्या से निजत पा सकते की सठिया गई है अंतरात्मा |
अब मैं बताता हूँ आत्मा कहाँ सठिया गई |
आप सोचये भगवन ने इस संसार में कई प्राणी को भेजा लेकिन हम इन्सान से उमीद रख कर कुछ अलग बनाया, और एक अस्त्र दिया जिसका नाम दिमाग दिया, और हम उस दिमाग का उपयोग अपने आप को चाँद सितारों से हाथ मिलाने के लिए करने लगे | निक्य्लोर पॉवर जैसे सिस्टम तक पहुच गए | इन सब तरक्की के दरमयान हम ये भूलते चले गए की एक हम से भी जयादा दिमाग वाला है, जो हमें दिमाग दिया और उनके बनाये उसुलू को तोरते मरोरते चले गए | अब आप सोचये जब हम एक दुसरे के बात से सहमत नहीं होते | अच्छे बुरे में तो हमारी आपसी रंजिस हो जाता | एक दुसरे को मारने मरने पे उतारू हो जाता हैं, तो सोचये जिसने हमें जीने का हक़ दिया सुन्दर सा दुनिया बना कर दिया हवा पानी सूर्य चाँद दिया और हम उनकी बातो से सहमत नहीं रहते तो ओ कितना नाराज हो रहा होगा | हम पर यही अहसाश दिलाने के लिए भूकंप और सोनामी जैसे लीला प्रकृति करती रहती है | हमारी आत्मा यहाँ सठिया गई हम अपने चका चाँद जिन्दगी बनाने के लिए उन प्रजाति की कोई कीमत ही नहीं समझते जो हमारे संपर्क में रोजमरा नहीं आता | एक उदाहरण के तोर पे भारत में १३० + मछलिया की प्रजाति पाई जाती थी आज से कुछ दसक पहले और अभी भारत में मात्र ८३-८५ प्रजाति की मछलिया पाई जाती है | आप सोचये अगर हम इन्सान में लरका या लरकी काला या गोरा इन्सान, लम्बा या बोना इन्सान, में से किसी एक का अस्तित्व ख़तम हो जाये तो इन्सान का क्या पहचान रह जायेगा | इसी तरह और प्रजाति की भी समस्या हैं | हम आप विज्ञानं के किताब में लाइफ साइकल वयवस्था पढ़े है की एक के बिना लाइफ साइकल टूट जायेगा और प्रलय हो जायेगा | ऐसी कई सरे उदाहरण आप को मिलेंगे सोचये डयानासुर जैसे प्राणी तब्दील और लुप्त हो सकता तो हम आदमी की क्या ? यहाँ हम जो अपनी आत्मा को सठिया रहे इसे सठियाने ना दे | प्रकृति को सजोगने के लिए आप अपनी सेवा दे | जब प्रकृति नहीं रहेगा तो हम कोंन से मनमोहन सिंह जी और कोंन से विनायक सेन जी को कटघरे में घेरेंगे |
दोस्तों इसके लिए एक सुझाव मैं अपनी तरफ से रखता हूँ जिन लोगो को सुझाव अच्छा लगे कृपा कर सहयोग के लिए अपनी हाथ बढ़ाये |
जो भी दोस्त फेसबुक में ये ब्लॉग पढ़ते हैं ओर आप को लगता है की आप जॉब कर रहे है १०००० रूपये प्रति माह आप की आय हैं | आप अपनी आय का २०० रूपये प्रति माह प्रकृति को बचाने के लिए खर्च कर सकते है | दोस्त आप २०० रूपये नहीं दे सकते तो आप और तरह से सहयोग दे सकते हैं | अब आप के पास ये प्रश्न हैं की २०० रूपये प्रति माह से क्या होगा | हम १० लोग भी अगर आगे बढे तो महीने के २००० रूपये जोर कर २ -४ पेर लगा सकते हैं | ऐसे अगर हम ५ साल भी करते तो २०० पेर जरुर लगा लेंगे | अब आप ये पूछते हैं की हमारे देश में बहुत संस्था है सरकार हैं |
मैं मानता हूँ सरकार चाहे जो भी पार्टी का हो उनको तो अपनी सियासती रोटी और कुर्सी के सिवाय कुछ नहीं करना | और जो संस्था हैं बस इन बातो के पीछे अपना बिज़नस चला रहे १० पेर लगते और १०० पेर बताते है अपनी टेक्स बचाते और देश के प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए अपना दस्तावेज भेजदेता | मैं इन लोगो से हट के बात करता हूँ | जो भाई दोस्त दिल्ली में हैं जो और जगह हैं बिना दूर के सोचे निह्सवार्थ ये कार्य में सहयोग दे और प्रकृति को बचाने का गोरव पाए | हर कोई कुछ भी अपनी स्वार्थ के लिए करता मैं भी अपनी स्वार्थ में ऐसा सोच रहा हूँ लेकिन जब स्वार्थ भला के लिए हो तो नजरया अलग कर के सोचना चाहिए | मैं ऐसा करने में अपनी एक बुरी आदत को छोरने के लिए उत्सुक हूँ | सायद हमारे जैसे कई लोग हैं और उनकी मज़बूरी कही मेरे से बढ़ कर हो सकता | मैं सिगरेट पिता हूँ मैं इन रूपये से पेर लगाने को तैयार हूँ आप तमाम लोगो में कोई ना कोई ऐसी आदत होगा उसे थोरा कम कर के ये सोच सकते | सायद ये थोरा अटपटा लग रहा होगा दोस्तों लेकिन जरा सोचये हमारे जैसे करोरो लोग हैं, जो अपनी बुरी आदत से २०० रूपये बचा कर पेर लगा सकते | इसके लिए आपको कोई कागजी करवाई नहीं करना परेगा आप अपने आस पास के स्कूल सरक के किनारे अपने घर के आसपास भी कर सकते | घर पे करने की तो अलग बात है | अगर सरक के किनारे का योजना हो तो हम १० दोस्त मिल कर ऐसा कर सकते और इसके लिए हम किसी कानून वाव्स्था को अपने हाथ में नहीं लेंगे हम कोसिस करेंगे अपने आसपास के सरकारी दफ्तर से सहयोग लेंगे |
ऐसा हम कर सकते जरा सोचये अपने आत्मा से पुछये अगर मेरा ब्लॉग पढने के बाद किसी को अगर मुझे कोसने का मन करे तो जरुर कोसयेगा आप का हक़ है | आप को अच्छा नहीं लगे तो ख़राब बोलना हक़ हैं आपका | अगर लगता है आप मदद के लिए आगे आ सकते तो फेसबुक पे ही आप अपना योजना बना कर अपने सभी दोस्तों से आग्रह कर सकते और फिर सभी दोस्त मिल कर आगे कैसे ये सफल हो सकता सोचने लगेंगे और इसे जमीन तक लाने का |
अंततह हम अपने आत्मा को सठियाने से रोक सकते है |
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